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इसी में ख़ुश हूँ मेरा दुख कोई तो सहता है

Parveen ShakirParveen Shakir
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इसी में ख़ुश हूँ मेरा दुख कोई तो सहता है
चली चलूँ कि जहाँ तक ये साथ रहता है

ज़मीन-ए-दिल यूँ ही शादाब तो नहीं ऐ दोस्त
क़रीब में कोई दरिया ज़रूर बहता है

न जाने कौन सा फ़िक़्रा कहाँ रक़्म हो जाये
दिलों का हाल भी अब कौन किस से कहता है

मेरे बदन को नमी खा गई अश्कों की
भरी बहार में जैसे मकान ढहता है

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