राहत कहाँ नसीब थी जो अब कहीं नहीं's image
2 min read

राहत कहाँ नसीब थी जो अब कहीं नहीं

Pandit Brij Mohan Dattatreya KaifiPandit Brij Mohan Dattatreya Kaifi
0 Bookmarks 265 Reads0 Likes

राहत कहाँ नसीब थी जो अब कहीं नहीं
वो आसमाँ नहीं है की अब जो ज़मीं नहीं

हो जोश सिद्क़-ए-दिल में तो राहत बग़ल में हो
क़ाएम ये आसमान रहे या ज़मीन नहीं

हुब्ब-ए-वतन को हिम्मत-ए-मरदाना चाहिए
दरकार आह सीन-ए-अंदोह-गीं नहीं

ख़ून-ए-दिल-ओ-जिगर से इसे सींच ऐ अज़ीज़
कुश्त-ए-वतन है ये कोई कुश्त-ए-जवीं नहीं

हक़ गोई की सदा थी न रूकनी न रूक सकी
कब वार की सिनानें गलों में चुभीं नहीं

दाग़ ग़म-ए-वतन है निशान-ए-अज़ीज़-ए-ख़ल्क़
दिल पर न जिस को नक़्श हो ये वो नगीं नहीं

जंग-ए-वतन में सिद्क़ के हथियार का है काम
दरकार इस में अस्ला-ए-आहनीं नहीं

घर-बार तेरा पर तू किसी चीज़ को न छेड़
ये बात तो हरीफ़ों की कुछ दिल-नशीं नहीं

जिस बात पर अज़ीज़ अड़े है उड़े रहें
कहने दें उन को ऊँचे गले से नहीं नहीं

क्या जाने दिल जिगर को मेरे जो ये कह गया
दामन भी तार तार नहीं आस्तीं नहीं

माबूद है वतन हूँ परस्तार उसी का मैं
दैर ओ हरम में जो झुके ये वो जबीं नहीं

‘कैफ़ी’ इसी से ख़ैरियत-ए-हिन्द में है दैर
हुब्ब-ए-वतन का जोश कहीं है कहीं नहीं

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts