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इक ख़्वाब का ख़याल है दुनिया कहें जिसे

Pandit Brij Mohan Dattatreya KaifiPandit Brij Mohan Dattatreya Kaifi
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इक ख़्वाब का ख़याल है दुनिया कहें जिसे
है इस में इक तिलिस्म तमन्ना कहें जिसे

इक शक्ल है तफ़ंनुन-ए-तबा-ए-जमाल की
इस से ज़्यादा कुछ नहीं कहें जिसे

ख़म्याज़ा है करिश्मा-परस्ती-ए-दहर का
अहल-ए-ज़माना आलम-ए-उक़्बा कहें जिसे

इक अश्क ओ वार्मीदा-ए-ज़ब्त ग़म-ए-फ़िराक़
मौज हवा-ए-शौक़ है दरिया कहें जिसे

बा-वस्फ़-ए-ज़ब्त-ए-राज़-ए-मोहब्बत है आश्कार
उक़्दा है दिल का अक़्दा-सुरय्या कहें जिसे

बरहम ज़न-ए-हिजाब है ख़ुद रफ़्तगी हुस्न
इक शान-ए-बे-ख़ुदी है ज़ुलेखा कहें जिसे

अक्स सफ़ा-ए-क़ल्ब का जौहर है आईना
वारफ़्ता-ए-जमाल ख़ुद-आरा कहें जिसे

रम शेवा है सनम तो है रम आश्ना ये दिल
हासिल है मुझ को देश मुहय्या कहें जिसे

ख़ूनी कफ़न ये सैंत के रक्खा है किस लिए
क़ातिल वो है की रश्क-ए-मसीहा कहें जिसे

सब कुछ है और कुछ भी नहीं दहर का वजूद
‘कैफ़ी’ ये बात वो है मुअम्मा कहें जिसे

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