0 Bookmarks 565 Reads0 Likes
मैं किसके नाम लिखूँ, जो अलम गुज़र रहे हैं
मेरे शहर जल रहे हैं, मेरे लोग मर रहे हैं
कोई गुंचा हो कि गुल, कोई शाख हो शजर हो
वो हवा-ए-गुलिस्तां है कि सभी बिखर रहे हैं
कभी रहमतें थीं नाज़िल इसी खित्ता-ए-ज़मीन पर
वही खित्ता-ए-ज़मीन है कि अज़ाब उतर रहे हैं
वही ताएरों के झुरमुट जो हवा में झूलते थे
वो फ़िज़ा को देखते हैं तो अब आह भर रहे हैं
कोई और तो नहीं है पस-ए-खंजर-आजमाई
हमीं क़त्ल हो रहे हैं, हमीं क़त्ल कर रहे हैं
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments