मार दी तुझे पिचकारी's image
1 min read

मार दी तुझे पिचकारी

NiaralaNiarala
0 Bookmarks 128 Reads0 Likes

मार दी तुझे पिचकारी,
कौन री, रँगी छबि यारी ?

फूल -सी देह,-द्युति सारी,
हल्की तूल-सी सँवारी,
रेणुओं-मली सुकुमारी,
कौन री, रँगी छबि वारी ?

मुसका दी, आभा ला दी,
उर-उर में गूँज उठा दी,
फिर रही लाज की मारी,
मौन री रँगी छबि प्यारी।

निराला जी का यह नवगीत इंदौर से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'वीणा' के जून 1935 अंक में 'होली' शीर्षक से छपा था।

 

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts