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क्यों खोई पहचान साथी
पाया है धन मान साथी
अब तो तजो गुमान साथी
छोड़ो सब अभिमान
बड़े-बड़े हैं गले लगाते
जी भर कर गुन तेरे गाते
उज्ज्वल है दिनमान
फिर क्यों तेरे मन में भय है
कैसा यह दिल में संशय है
क्यों साँसत में जान साथी
सब सुख है तेरे जीवन में
कलुष भरा क्यों तेरे मन में
जग सारा हैरान साथी
जनता तुझ से आस लगाए
तू धन दौलत में भरमाए
कैसा यह अज्ञान साथी
हत्यारों में जा कर हरसे
अपनों पर तू नाहक बरसे
क्यों खोई पहचान साथी
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