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एक विफल आतंकवादी का आत्म-स्वीकार - 1

Neelabh Ashk (Poet)Neelabh Ashk (Poet)
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परधान मन्तरी जी,
बहुत दिनों से कोशिश कर रहा हूँ मैं
आतंकवादी बनने की
मगर नाकाम रहा हूँ।
(यह इक़बाले-जुर्म कर रहा हूँ
इस रिसाले के शुरू ही में
ताकि कोई परेशानी न हो आपको
और आपकी सुरक्षा-सेवाओं को)

कई बार कोशिश करने पर भी विफलता ही
जीवन की कथा रही
शायद वजह यह हो कि जिस तरह
आपने टेके घुटने उसी हुकूमत के सामने
जिसे अपने मुल्क से निकालने में
हज़ारों-हज़ार कुरबानियाँ दी थीं
मेरे पुरखों ने
उसने खींच ली ताक़त मेरे अन्दर से
क़ुरबान हो जाने की
या शायद मैं उम्र के उस दौर में हूँ
जब ज़िन्दगी और भी हसीन
और भी पुरलुत्फ़ लगती है
मौत और भी ख़ौफ़नाक

यह तो मामूली इन्सानी फ़ितरत है
दिखती है दूसरे जीवों में भी
मगर इतनी बेशर्मी से नहीं

 

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