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जब उस का इधर हम गुज़र देखते हैं
तो कर दिल में क्या क्या हज़र देखते हैं
उधर तीर चलते हैं नाज़-ओ-अदा के
इधर अपना सीना सिपर देखते हैं
सितम है कन-अँखियों से गर ताक लीजे
ग़ज़ब है अगर आँख भर देखते हैं
न देखें तो ये हाल होता है दिल का
कि सौ सौ तड़प के असर देखते हैं
जो देखें तो ये जी में गुज़रे है ख़तरा
अभी सर उड़ेगा अगर देखते हैं
मगर इस तरह देखते हैं कि उस पर
ये साबित न हो जो उधर देखते हैं
छुपा कर दग़ा कर 'नज़ीर' उस सनम को
ग़रज़ हर तरह इक नज़र देखते हैं
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