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गुलज़ार है दाग़ों से यहाँ तन-बदन अपना

Nazeer AkbarabadiNazeer Akbarabadi
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गुलज़ार है दाग़ों से यहाँ तन-बदन अपना

कुछ ख़ौफ़ ख़िज़ाँ का नहीं रखता चमन अपना

अश्कों के तसलसुल ने छुपाया तन-ए-उर्यां

ये आब-ए-रवाँ का है नया पैरहन अपना

किस तरह बने ऐसे से इंसाफ़ तो है शर्त

ये वज़्अ मिरी देखो वो देखो चलन अपना

इंकार नहीं आप के घर चलने से मुझ को

मैं चलने को मौजूद जो छोड़ो चलन अपना

मस्कन का पता ख़ाना-ब-दोशों से न पूछो

जिस जा पे कि बस गिर रहे वो है वतन अपना

 

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