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नभ के नीले सूनेपन में
हैं टूट रहे बरसे बादर
जाने क्यों टूट रहा है तन !
बन में चिड़ियों के चलने से
हैं टूट रहे पत्ते चरमर
जाने क्यों टूट रहा है मन !
घर के बर्तन की खन-खन में
हैं टूट रहे दुपहर के स्वर
जाने कैसा लगता जीवन !
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