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सकी तुज ज़ुल्फ़ है जीवाँ के आख़िज

Muhammad Quli Qutb ShahMuhammad Quli Qutb Shah
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सकी तुज ज़ुल्फ़ है जीवाँ के आख़िज़

दसन तेरे अहें रतनाँ के आख़िज़

तिरी नैनाँ थे पंचे हैं मंतर सब

तिरे नाज़ाँ हैं सब सुथराँ के आख़िज़

सहे तुज सीस परांचल सहेली

सहे सब आशिक़-ए-दर वाँ के आख़िज़

तिरी पुतलियाँ भलाइयाँ हैं जगत कूँ

नयन दो मस्त हैं मस्ताँ के आख़िज़

नखाँ मेरे हैं तुज जोबन के मुश्ताक़

अधर मेरे तिरे बोसियाँ के आख़िज़

अली नान्वाँ ओ कहिया यू ग़ज़ल 'क़ुतुब'

अली नान्वाँ हैं सब कामाँ के आख़िज़

 

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