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जुगनू की रौशनी है काशाना-ए-चमन में
या शम्अ' जल रही है फूलों की अंजुमन में
आया है आसमाँ से उड़ कर कोई सितारा
या जान पड़ गई है महताब की किरन में
या शब की सल्तनत में दिन का सफ़ीर आया
ग़ुर्बत में आ के चमका गुमनाम था वतन में
तक्मा कोई गिरा है महताब की क़बा का
ज़र्रा है या नुमायाँ सूरज के पैरहन में
हुस्न-ए-क़दीम की इक पोशीदा ये झलक थी
ले आई जिस को क़ुदरत ख़ल्वत से अंजुमन में
छोटे से चाँद में है ज़ुल्मत भी रौशनी भी
निकला कभी गहन से आया कभी गहन में
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