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दिल सोज़ से ख़ाली है

Muhammad IqbalMuhammad Iqbal
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दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है

फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है

है ज़ौक़-ए-तजल्ली भी इसी ख़ाक में पिन्हाँ

ग़ाफ़िल तू निरा साहिब-ए-इदराक नहीं है

वो आँख कि है सुर्मा-ए-अफ़रंग से रौशन

पुरकार ओ सुख़न-साज़ है नमनाक नहीं है

क्या सूफ़ी ओ मुल्ला को ख़बर मेरे जुनूँ की

उन का सर-ए-दामन भी अभी चाक नहीं है

कब तक रहे महकूमी-ए-अंजुम में मिरी ख़ाक

या मैं नहीं या गर्दिश-ए-अफ़्लाक नहीं है

बिजली हूँ नज़र कोह ओ बयाबाँ पे है मेरी

मेरे लिए शायाँ ख़स-ओ-ख़ाशाक नहीं है

आलम है फ़क़त मोमिन-ए-जाँबाज़ की मीरास

मोमिन नहीं जो साहिब-ए-लौलाक नहीं है

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