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दिल-ए-बेदार

Muhammad IqbalMuhammad Iqbal
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दिल-ए-बेदार फ़ारूक़ी दिल-ए-बेदार कर्रारी

मिस-ए-आदम के हक़ में कीमिया है दिल की बेदारी

दिल-ए-बेदार पैदा कर कि दिल ख़्वाबीदा है जब तक

न तेरी ज़र्ब है कारी न मेरी ज़र्ब है कारी

मशाम-ए-तेज़ से मिलता है सहरा में निशाँ उस का

ज़न ओ तख़मीं से हाथ आता नहीं आहू-ए-तातारी

इस अंदेशे से ज़ब्त-ए-आह मैं करता रहूँ कब तक

कि मुग़-ज़ादे न ले जाएँ तिरी क़िस्मत की चिंगारी

ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ

कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी

मुझे तहज़ीब-ए-हाज़िर ने अता की है वो आज़ादी

कि ज़ाहिर में तो आज़ादी है बातिन में गिरफ़्तारी

तू ऐ मौला-ए-यसरिब आप मेरी चारासाज़ी कर

मिरी दानिश है अफ़रंगी मिरा ईमाँ है ज़ुन्नारी

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