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बदल के भेस फिर आते हैं हर ज़माने में
अगरचे पीर है आदम जवाँ हैं लात-ओ-मनात
ये एक सज्दा जिसे तू गिराँ समझता है
हज़ार सज्दे से देता है आदमी को नजात
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बदल के भेस फिर आते हैं हर ज़माने में
अगरचे पीर है आदम जवाँ हैं लात-ओ-मनात
ये एक सज्दा जिसे तू गिराँ समझता है
हज़ार सज्दे से देता है आदमी को नजात
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