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बदल के भेस

Muhammad IqbalMuhammad Iqbal
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बदल के भेस फिर आते हैं हर ज़माने में

अगरचे पीर है आदम जवाँ हैं लात-ओ-मनात

ये एक सज्दा जिसे तू गिराँ समझता है

हज़ार सज्दे से देता है आदमी को नजात

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