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ऐ आफ़्ताब रूह-ओ-रवान-ए-जहाँ है

Muhammad IqbalMuhammad Iqbal
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ऐ आफ़्ताब रूह-ओ-रवान-ए-जहाँ है तू

शीराज़ा-बंद दफ़्तर-ए-कौन-ओ-मकाँ है तू

बाइ'स है तू वजूद-ओ-अदम की नुमूद का

है सब्ज़ तेरे दम से चमन हस्त-ओ-बूद का

क़ाएम ये उंसुरों का तमाशा तुझी से है

हर शय में ज़िंदगी का तक़ाज़ा तुझी से है

हर शय को तेरी जल्वा-गरी से सबात है

तेरा ये सोज़-ओ-साज़ सरापा हयात है

वो आफ़्ताब जिस से ज़माने में नूर है

दिल है ख़िरद है रूह-ए-रवाँ है शुऊर है

ए आफ़्ताब हम को ज़िया-ए-शुऊर दे

चश्म-ए-ख़िरद को अपनी तजल्ली से नूर दे

है महफ़िल-ए-वजूद का सामाँ-तराज़ तो

यज़्दान-ए-साकिनान-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ तू

तेरा कमाल-ए-हस्ती हर जान-दार में

तेरी नुमूद सिलसिला-ए-कोहसार में

हर चीज़ की हयात का परवरदिगार तू

ज़ाईदन-ए-नूर का है ताजदार तू

नय इब्तिदा कोई न कोई इंतिहा तिरी

आज़ाद क़ैद-ए-अव्वल-ओ-आख़िर ज़िया तिरी

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