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'मोमिन' ख़ुदा के वास्ते ऐसा मकाँ न छोड़
दोज़ख़ में डाल ख़ुल्द को कू-ए-बुताँ न छोड़
आशिक़ तो जानते हैं वो ऐ दिल यही सही
हर-चंद बे-असर है पर आह ओ फ़ुग़ाँ न छोड़
उस तबा-ए-नाज़नीं को कहाँ ताब-ए-इंफ़िआल
जासूस मेरे वास्ते ऐ बद-गुमाँ न छोड़
नाचार देंगे और किसी ख़ूब-रू को दिल
अच्छा तू अपनी ख़ू-ए-बद ऐ बद-ज़बाँ न छोड़
ज़ख़्मी किया उदू को तो मरना मुहाल है
क़ुर्बान जाऊँ तेरे मुझे नीम-जाँ न छोड़
कुछ कुछ दुरुस्त ज़िद से तिरी हो चले हैं वो
यक-चंद और कज-रवी ऐ आसमाँ न छोड़
जिस कूचे में गुज़ार सबा का न हो सके
ऐ अंदलीब उस के लिए गुलसिताँ न छोड़
गर फिर भी अश्क आएँ तो जानूँ कि इश्क़ है
हुक़्क़े का मुँह से ग़ैर की जानिब धुआँ न छोड़
होता है इस जहीम में हासिल विसाल-ए-जौर
'मोमिन' अजब बहिश्त है दैर-ए-मुग़ाँ न छोड़
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