मैंने कुछ नहीं कहा बस सुनता रहा
लोगों को उम्मीद थी एक दिन मैं बोलूँगा
कोई शब्द
जो मुझे याद है अब तक
मैं पेड़ों की दुनिया में था
हवा और आकाश की दुनिया में
दिन और रात की दुनिया में
पानी की आवाज़ की दुनिया में
बारिश में प्रकट होते केंचुए की दुनिया में
पीड़ा और ख़ुशी की दुनिया में
भूख और प्यास की दुनिया में
चेहरों की दुनिया में
किसी दुनिया में जहाँ मैं मूक था
क्या यह बच्चा कभी बोलेगा भी
क्या यह गूँगा है
लोग पूछते पुकारते मेरा नाम
बताते अपना नाम
और मैं बस हँसता
एक दिन मैंने कुछ कहा
और हि्स्सा बन गया शेष कोलाहल का
तैर सकता था उड़ सकता था
मैं दौड़ सकता था उसमें
पर चुप नहीं रह सकता था
कुछ कहना चाहता था पर
कोई नहीं सुन पाता मुझे
उसमें कोई किसी का नहीं सुनता
पहला शब्द इस जीवन का जो याद मुझे अब तक
जैसे वो हो मेरी अस्मिता
तो मैं लिखता हूँ यह कि कोई पढ़े
कौन
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