
0 Bookmarks 101 Reads0 Likes
हम सुनेंगे तुम्हारे स्वरों को चुपचाप
रिमझिम में भीगते
धोते अपने अंतर को उनकी धारा में,
बारिश चली जाएगी
अनजाने अंतरालों में
समेटते स्मृतियों की कतरनों में
जाने कब से दम साधे बोल पड़ती अनुगूँज दोपहर की
तुम्हें सुनते सुनते
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments