निकोटीन's image
2 min read

निकोटीन

Manglesh DabralManglesh Dabral
0 Bookmarks 221 Reads0 Likes



अपने शरीर को रफ्तार देने के लिए सुबह-सुबह मेरा रक्त निकोटिन को पुकारता है। अर्ध-निमीलित आँखें निकोटिन की उम्मीद में पूरी तरह खुल जाती हैं। अपने अस्तित्व से और अतीत से भी यही आवाज़ आती है कि निकोटिन के कितने ही अनुभव तुम्हारे भीतर सोए हुए हैं। सुबह की हवा, खाली पेट, ऊपर धुला हुआ आसमान जो अभी गन्दा नहीं हुआ है, बचपन के उस पत्थर की याद जिस पर बैठकर मैंने पहली बीड़ी सुलगाई और देह में दस्तक देता हुआ महीन माँसल निकोटिन। जीवन के पहले प्रेम जैसे स्पन्दन और धुआँ उड़ाने के लिए सामने खुलती हुई दुनिया। डॉक्टर कई बार मना कर चुके हैं कि अब आपको दिल का ख़याल रखना ही होगा और मेरी बेटी बार-बार आकर गुस्से में मेरी सिगरेट बुझा देती है, लेकिन इससे क्या? मेरे सामने एक भयंकर दिन है और पिछले दिन की बुरी ख़बरें देखकर लगता है कि यह दिन भी कोई बेहतर नहीं होने जा रहा है और उससे लडऩे के लिए मैं सोचता हूँ मुझे निकोटिन चाहिए। मुझे पता है हिन्दी का एक कवि असद जैदी अपनी एक कविता में बता चुका है कि 'तम्बाकू के नशे में आदमी दुनिया की चाल भूल जाता है'। इस दुनिया की चाल भूलने के लिए मुझे निकोटिन चाहिए। दिन भर के अत्याचारियों तानाशाहों हत्यारों से लडऩे के लिए जब मुझे कोई उपाय नहीं सूझता तो मैं निकोटिन को खोजता हूँ और फिर रात को जब दिन भर की तमाम वारदातें मेरे चारों ओर काले धब्बों की शक्ल में मुझे घेरती हैं तो लगता है कि मुझे रात का निकोटिन चाहिए। सच तो यह है कि जिन चीज़ों के बल पर मैं आज तक चलता चला आया हूँ उनमें किसी न किसी तरह का निकोटिन मौजूद रहा।

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts