जला के मशाल-ए-जान's image
1 min read

जला के मशाल-ए-जान

Majrooh SultanpuriMajrooh Sultanpuri
0 Bookmarks 464 Reads0 Likes

जला के मशाल-ए-जान हम जुनूं सिफात चले
जो घर को आग लगाए हमारे साथ चले

दयार-ए-शाम नहीं, मंजिल-ए-सहर भी नहीं
अजब नगर है यहाँ दिन चले न रात चले

हुआ असीर कोई हम-नवा तो दूर तलक
ब-पास-ए-तर्ज़-ए-नवा हम भी साथ साथ चले

सुतून-ए-दार पे रखते चलो सरों के चिराग
जहाँ तलक ये सितम की सियाह रात चले

बचा के लाये हम ऐ यार फिर भी नकद-ए-वफ़ा
अगरचे लुटते हुए रहज़नों के हाथ चले

फिर आई फसल की मानिंद बर्ग-ऐ-आवारा
हमारे नाम गुलों के मुरासिलात चले

बुला ही बैठे जब अहल-ए-हरम तो ऐ मजरूह
बगल मैं हम भी लिए एक सनम का हाथ चले

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts