1 Bookmarks 1021 Reads5 Likes
मैं ग़ज़ल हूँ मुझे जब आप सुना करते हैं
चंद लम्हे मिरा ग़म बाँट लिया करते हैं
जब वफ़ा करते हैं हम सिर्फ़ वफ़ा करते हैं
और जफ़ा करते हैं जब सिर्फ़ जफ़ा करते हैं
लोग चाहत की किताबों में छुपा कर चेहरे
सिर्फ़ जिस्मों की ही तहरीर पढ़ा करते हैं
लोग नफ़रत की फ़ज़ाओं में भी जी लेते हैं
हम मोहब्बत की हवा से भी डरा करते हैं
अपने बच्चों के लिए लाख ग़रीबी हो मगर
माँ के पल्लू में कई सिक्के मिला करते हैं
जो कभी ख़ुश न हुए देख के शोहरत मेरी
मेरे अपने हैं मुझे प्यार किया करते हैं
जिन के जज़्बात हूँ नुक़सान नफ़अ' की ज़द में
उन के दिल में कई बाज़ार सजा करते हैं
फिक्र-ओ-एहसास पे पर्दा है 'हया' का वर्ना
हम ग़लत बात न सुनते न कहा करते हैं
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments