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शब्दों की तरफ़ से

Kunwar NarayanKunwar Narayan
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कभी कभी शब्दों की तरफ़ से भी
दुनिया को देखता हूँ ।


किसी भी शब्द को

एक आतशी शीशे की तरह

जब भी घुमाता हूँ आदमी, चीज़ों या सितारों की ओर

मुझे उसके पीछे

एक अर्थ दिखाई देता

जो उस शब्द से कहीं बड़ा होता है


ऐसे तमाम अर्थों को जब

आपस में इस तरह जोड़ना चाहता हूँ

कि उनके योग से जो भाषा बने

उसमें द्विविधाओं और द्वाभाओं के

सन्देहात्मक क्षितिज न हों, तब-


सरल और स्पष्ट

(कुटिल और क्लिष्ट की विभाषाओं में टूट कर)

अकसर इतनी द्रुतगति से अपने रास्तों को बदलते

कि वहाँ विभाजित स्वार्थों के जाल बिछे दिखते

जहाँ अर्थपूर्ण संधियों को होना चाहिए ।

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