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ख़ुशी याद आई कि ग़म याद आए

Kunwar Mohinder Singh BediKunwar Mohinder Singh Bedi
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ख़ुशी याद आई कि ग़म याद आए

मगर तुम हमें दम-ब-दम याद आए

जो तुम याद आए तो ग़म याद आए

जो ग़म याद आए तो हम याद आए

छिड़ा ज़िक्र जब उन के जौर-ओ-सितम का

मुझे उन के लाखों करम याद आए

मोहब्बत में इक वक़्त ऐसा भी गुज़रा

न तुम याद आए न हम याद आए

फ़लक पर जो देखे मह-ओ-मेहर-ओ-अंजुम

हमें अपने नक़्श-ए-क़दम याद आए

मुक़द्दर को जब भी सँवारा है हम ने

तिरी ज़ुल्फ़ के पेच-ओ-ख़म याद आए

अजब कश्मकश है कि जीना न मरना

'सहर' उस से कह दो कि कम याद आए

 

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