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हर लहज़ा कमीं दिल में तिरी याद रहेगी

Kunwar Mohinder Singh BediKunwar Mohinder Singh Bedi
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हर लहज़ा कमीं दिल में तिरी याद रहेगी

बस्ती ये उजड़ने पे भी आबाद रहेगी

है हस्ती-ए-आशिक़ का बस इतना ही फ़साना

बर्बाद थी बर्बाद है बर्बाद रहेगी

है इश्क़ वो नेमत जो ख़रीदी नहीं जाती

ये शय है ख़ुदा-दाद ख़ुदा-दाद रहेगी

सय्याद को मालूम न था राज़ ये शायद

ये रूह क़फ़स में भी तो आज़ाद रहेगी

वो आए भी तो ज़ब्त से लब हिल न सकेंगे

फ़रियाद मिरी तिश्ना-ए-फ़रियाद रहेगी

ये हुस्न-ए-सितम-कोश सितम-कोश है कब तक

कब तक ये नज़र बानी-ए-बे-दाद रहेगी

वो ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ का सँवारे न सँवरना

वो उन के बिगड़ने की अदा याद रहेगी

 

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