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बसों पर तबस्सुम तो आँखों में पानी

Kunwar Mohinder Singh BediKunwar Mohinder Singh Bedi
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बसों पर तबस्सुम तो आँखों में पानी

यही है यही दिल-जलों की निशानी

तिरी बे-रुख़ी और तिरी मेहरबानी

यही मौत है और यही ज़िंदगानी

वही इक फ़साना वही इक कहानी

जवानी जवानी जवानी जवानी

न अब वो मसर्रत न वो शादमानी

दरेग़ा जवानी दरेग़ा जवानी

मोहब्बत ही है अस्ल में जावेदानी

बुढ़ापा भी फ़ानी जवानी भी फ़ानी

अता कर मुझे वो मक़ाम-ए-मोहब्बत

करे हुस्न ख़ुद इश्क़ की पासबानी

बताऊँ है क्या आँसुओं की हक़ीक़त

जो समझो तो सब कुछ न समझो तो पानी

ज़मीं से तअ'ल्लुक़ न रिश्ता फ़लक से

मुसीबत है गोया बुलंद आशियानी

'सहर' इस जहान-ए-बहार-ए-ख़िज़ाँ में

ख़ुशी दाइमी है न ग़म जावेदानी

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