0 Bookmarks 156 Reads0 Likes
सीतल सदन में सीतल भोजन भयौ,
सीतल बातन करत आई सब सखियाँ ।
छीर के गुलाब-नीर, पीरे-पीरे पानन बीरी,
आरोगौ नाथ ! सीरी होत छतियाँ ॥
जल गुलाब घोर लाईं अरगजा-चंदन,
मन अभिलाष यह अंग लपटावनौ ।
कुंभनदास प्रभु गोवरधन-धर,
कीजै सुख सनेह, मैं बीजना ढुरावनौ ॥
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments