
आश्ना गोश से उस गुल के सुख़न है किस का
कुछ ज़बाँ से कहे कोई ये दहन है किस का
पेशतर हश्र से होती है क़यामत बरपा
जो चलन चलते हैं ख़ुश-क़द ये चलन है किस का
दस्त-ए-क़ुदरत ने बनाया है तुझे ऐ महबूब
ऐसा ढाला हुआ साँचे में बदन है किस का
किस तरह तुम से न माँगें तुम्हीं इंसाफ़ करो
बोसा लेने का सज़ा-वार दहन है किस का
शादी-ए-मर्ग से फूला मैं समाने का नहीं
गोर कहते हैं किसे नाम कफ़न है किस का
दहन-ए-तंग है मौहूम यक़ीं है किस को
कमर-ए-यार है मादूम ये ज़न है किस का
मुफ़सिदे जो कि हों उस चश्म-ए-सियह से कम हैं
फ़ित्ना-पर्दाज़ी जिसे कहते हैं फ़न है किस का
एक आलम को तिरे इश्क़ में सकता होगा
साफ़ आईना से शफ़्फ़ाफ़ बदन है किस का
हुस्न से दिल तो लगा इश्क़ का बीमार तो हो
फिर ये उन्नाब-ए-लब ओ सेब-ए-ज़क़न है किस का
गुलशन-ए-हुस्न से बेहतर कोई गुलज़ार नहीं
सुम्बुल इस तरह का पुर-पेच-ओ-शिकन है किस का
बाग़-ए-आलम का हर इक गुल है ख़ुदा की क़ुदरत
बाग़बाँ कौन है इस का ये चमन है किस का
ख़ाक में उस को मिलाऊँ उसे बर्बाद करूँ
जान किस की है मिरी जान ये तन है किस का
सर्व सा क़द है नहीं मद्द-ए-नज़र का मेरे
गुल सा रुख़ किस का है ग़ुंचा सा दहन है किस का
क्यूँ न बे-साख़्ता बंदे हों दिल-ओ-जाँ से निसार
क़ुदरत अल्लाह की बे-साख़्ता-पन है किस का
आज ही छूटे जो छुटता ये ख़राबा कल हो
हम ग़रीबों को है क्या ग़म ये वतन है किस का
यार को तुम से मोहब्बत नहीं ऐ 'आतिश'
ख़त में अलक़ाब ये फिर मुश्फ़िक़-ए-मन है किस का
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