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मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही

Kashmiri Lal ZakirKashmiri Lal Zakir
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मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही

फ़ज़ा-ए-दर्द-ए-तमन्ना को रास आ न सकी

ख़ुशी उफ़ुक़ पे खड़ी देखती रही मुझ को

उसे बुला न सका, ख़ुद वो पास आ न सकी

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