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आँख भी न बंद

Kailash VajpeyiKailash Vajpeyi
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आँख भी न ब‍ंद हो
और ये दुनिया आंखों से ओझल हो जाये
कुछ ऐसी तरकीब करना
डूबना तो तय है इसलिये, नाव नहीं
नदी पर भरोसा करना
तुम उन लोगों में हो जो
चीख़ से चलकर चुप्पी पर आए हैं
केचुल की तरह शहर छोड़ कर
जंगल से की है दोस्ती
जहाँ दाएँ-बाएँ की बहस नहीं तुम हो
हवाएँ हैं
पत्ता-पत्ता बेतार वाले तार से
यही ख़बर लाता है बार-बार
जिसकी जड़ जितनी गहरी से गहरी है
वह उतनी ऊँचाई चूम पाता है
शहर मगर अब भी , पीछाकर रहा है
तुम परेशान हो
दुकान तो बढ़ा दी तब भी सामान क्यों बिक रहा है
असल में तुम्हारी बीमारी दोहरी है
तुमको बुख़ार था और तुम बुख़ार में शराब पीते रहे
जीते रहे ज़िन्दगी उधार की,
और अब भौंचक्के हैरान हो
यह जो तुम्हारे गंधाते शरीर से
कभी-कभी उठती है बन कर सुगन्ध-सी
इतने दिन कहाँ बन्द थी?
ज़रूर कुछ धोखा हुआ है
तुमको लगता है
यह सब स्वप्न में हुआ है
जब तक हो नहीं जाए
जुगनू भी कहाँ मानता है सवेरे को
असल में तुम गुज़रे
दौर के अँधेरे से ग्रस्त हो
और
यह अँधेरा खासा बुज़ुर्ग है.
तुम्हारी हिसाब से वह आदमी आदमी नहीं
शोर न मचाए जो नि:शोक हो
जो सोच की दूरबीन से
घाव गिने पृथ्वी के
दु:ख की प्रदर्शनी लगाए
इश्तहार दे रोग-जोग का
वह आदमी है विचारशील
वह आदमी है काम का
तुमने सिक्के का यह पहलू अभी-अभी देखा है
जलती नहीं कोई आग बिना ईंधन के
बीज जब मिटता है
अंकुर होता है
अभी-अभी मोर नाचा है गूँजी बाँसुरी
अमृत अभी-अभी बरसा है
अभी-अभी जला है चिराग़
धैर्य धरना
हर जन्म दूसरी तरह का देहान्त है
हर जीत के आगे-पीछे शिकस्त
इसलिए सफलता से डरना
डूबना तो तय है इसलिए, नाव नहीं, नदी पर
भरोसा करना.

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