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तिरी याद में कब क़यामत न टूटी

Josh MalsiyaniJosh Malsiyani
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तिरी याद में कब क़यामत न टूटी तिरे ग़म में कब हश्र बरपा न देखा

ब-जुज़ इक निगाह-ए-मसीहा-नफ़स के मोहब्बत के मारों ने क्या क्या न देखा

बहुत सैर की बाग़-ए-जन्नत की हम ने मगर कुछ मज़ा ज़िंदगी का न देखा

किसी दिल में दर्द-ए-मोहब्बत न पाया किसी दिल में दाग़-ए-तमन्ना न देखा

बहुत मर्द-ए-मैदाँ भी दुनिया में देखे शुजाअत पे नाज़ाँ भी दुनिया में देखे

मगर चोट सह जाए तीर-ए-नज़र की ये दिल ये कलेजा किसी का न देखा

यही है नज़ारा तो क्या है नज़ारा न शान-ए-जमाली न शान-ए-जलाली

ये धुँदला सा परतव ये मस्तूर जल्वा बराबर है हम को तो देखा न देखा

जुनून-ए-मोहब्बत में दीवानगी में तिरी बे-रुख़ी का भी मैं क़द्र-दाँ हूँ

बड़ा तू ने एहसान मुझ पर किया ये तमाशा बना कर तमाशा न देखा

तिरे आस्ताँ का पता किस से पाएँ करे रहबरी कौन भटके हुओं की

ये राह-ए-तलब है कि राह-ए-अदम है किसी का भी नक़्श-ए-कफ़-ए-पा न देखा

मोहब्बत कहाँ ये तो बेचारगी है सितम भी सहें फिर करम इस को समझें

ये जब्र इस लिए कर लिया है गवारा कि इस के सिवा कोई चारा न देखा

नियाज़-ए-मोहब्बत से ये बे-नियाज़ी ख़ुलूस-ए-मोहब्बत से इतना तग़ाफ़ुल

मिरा दर्द तुम ने मिरा हाल तुम ने न जाना न समझा न पूछा न देखा

तुम्हें 'जोश' हम ख़ूब पहचानते हैं तुम्हारी बला-नोशीयाँ जानते हैं

कहाँ तुम कहाँ पारसाई का जामा कभी हम ने ऐसा दिखावा न देखा

 

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