जितने थे तिरे जल्वे सब बन गए बुत-ख़ाने
अब चश्म-ए-तमाशाई क्यूँ कर तुझे पहचाने
असरार हक़ीक़त के समझे नहीं फ़रज़ाने
तक़्सीर तो थी उन की मारे गए दीवाने
मस्तान-ए-मोहब्बत ने दुनिया में यही देखा
टूटे हुए पैमाने टूटे हुए मय-ख़ाने
फूलों की हँसी से भी दिल जिन का नहीं खिलता
उन को भी हँसाते हैं हँसते हुए पैमाने
वो हाल सुनाऊँ क्या जो ग़ैर-मुकम्मल है
अब तक की तो मैं जानूँ आगे की ख़ुदा जाने
झगड़ा न कभी उठता तू-तू न कभी होती
कुछ शैख़ है दीवाना कुछ रिंद हैं दीवाने
वो मुझ पे करम-फ़रमा होगा कि नहीं होगा
या उस को ख़ुदा जाने या मेरी क़ज़ा जाने
हम कहते रहे जब तक रूदाद मोहब्बत की
हँसते रहे फ़रज़ाने रोते रहे दीवाने
समझा था जिन्हें अपना जब उन की रविश ये है
औरों की शिकायत क्या बेगाने तो बेगाने
वहशत तो नहीं मुझ को ऐ 'जोश' मगर फिर भी
याद आते हैं रह रह कर छोड़े हुए वीराने
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments