0 Bookmarks 139 Reads0 Likes
बचपन में
काग़ज़ पर
स्याही की बूंद डाल
कोने को मोड़ कर
छापा बनाया
जैसा रूप
रेखा के इधर बना,
वैसा ही ठीक उधर आया।
भोर के धुंधलके में
ऎसी ही लगी मुझे
छतरीदार नाव के
साथ-साथ चलती हुई छाया ।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments