
याद आती हैं हमें जान तुम्हारी बातें
हाए वो प्यार की आवाज़ वो प्यारी बातें
पहरों चुप रहते हैं हम और अगर बोलते हैं
वही फिर फिर के उलटती हैं तुम्हारी बातें
ग़ैर हर दम मुझे बातें जो सुना जाते हैं
जानता हूँ ये मैं ऐ जान तुम्हारी बातें
याद आता है तिरा क्या के एवज़ का कहना
हाए फिर कब मैं सुनूँगा वो गँवारी बातें
है बुरी बात ये अग़्यार से बातें करनी
वर्ना ऐ जान तिरी अच्छी हैं सारी बातें
इस तरह बोल निकलते न सुने थे हम ने
करती है साफ़ सनम तेरी सितारी बातें
तू वो एजाज़-ए-बयाँ है कि मसीहा समझें
सुन लें ऐ जान किसी दिन जो जुआरी बातें
इस लिए अश्क बहाता हूँ दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न
कि हमेशा रहें दुनिया में ये जारी बातें
तू वो गुल है कि अगर कान धरे गुलशन में
हो ज़बाँ मौज करे बाद-ए-बहारी बातें
कीजिए सेहर-बयानी से मुसख़्ख़र क्यूँ-कर
कभी सुनता नहीं 'नासिख़' वो हमारी बातें
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments