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सौ क़िस्सों से बेहतर है कहानी मिरे दिल की

IMAM BAKHSH NASIKHIMAM BAKHSH NASIKH
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सौ क़िस्सों से बेहतर है कहानी मिरे दिल की

सुन उस को तू ऐ जान ज़बानी मिरे दिल की

हर नाले में याँ टुकड़े जिगर होता है बुलबुल

आसान नहीं तर्ज़ उड़ानी मिरे दिल की

होनी है शहीद एक न इक रोज़ तमन्ना

मौक़ूफ़ हो क्या मर्सिया-ख़्वानी मिरे दिल की

पीरी में भी मिलता है जो कम-सिन कोई महबूब

करती है वहीं ऊद जवानी मिरे दिल की

तक़्सीम किए पारा-ए-दिल बज़्म-ए-बुताँ में

हर एक के है पास निशानी मिरे दिल की

इक बात में हो जाए मुसख़्ख़र वो परी-रू

सुनता ही नहीं सेहर-बयानी मिरे दिल की

है अब्र तो क्या चाहे फ़लक को भी जला दे

बिजली में कहाँ शोला-फ़िशानी मिरे दिल की

ज़ुल्फ़ों में किया क़ैद न अबरू से किया क़त्ल

तू ने तो कोई बात न मानी मिरे दिल की

ये बार-ए-ग़म-ए-इश्क़ समाया है कि 'नासिख़'

है कोह से दह-चंद गिरानी मिरे दिल की

 

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