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करती है मुझे क़त्ल मिरे यार की रफ़्तार

IMAM BAKHSH NASIKHIMAM BAKHSH NASIKH
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करती है मुझे क़त्ल मिरे यार की रफ़्तार

तलवार की तलवार है रफ़्तार की रफ़्तार

कज ऐसी न थी आगे मिरे यार की रफ़्तार

सीखा है मगर चर्ख़-ए-सितम-गार की रफ़्तार

सर गिरते हैं कट कट के वो रखता है जहाँ पाँव

सीखी है मगर यार ने तलवार की रफ़्तार

गर्दिश है तिरी नर्गिस-ए-बीमार को दिन-रात

देखी नहीं ऐसी किसी बीमार की रफ़्तार

टलती नहीं ज़ुल्फ़ों के तसव्वुर की तरह से

है तुर्फ़ा जुदाई की शब-ए-तार की रफ़्तार

लग़्ज़िश न हो क्यूँ कर रह-ए-दीं में मुझे ज़ाहिद

याद आ गई उस काफ़िर-ए-मय-ख़्वार की रफ़्तार

ज़ालिम तिरे कूचे से क़दम उठ नहीं सकता

क्यूँ कर न चलूँ साया-ए-दीवार की रफ़्तार

क्या मार को निस्बत तिरे गेसू के चलन से

है साया-ए-गेसू में सनम मार की रफ़्तार

मोती एवज़-ए-नक़्श-ए-क़दम गिरते हैं 'नासिख़'

ऐसी है मिरी किल्क-ए-गुहर-बार की रफ़्तार

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