0 Bookmarks 81 Reads0 Likes
जो कुछ भी गुज़रता है मिरे दिल पे गुज़र जाए
उतरा हुआ चेहरा मिरी धरती का निखर जाए
इक शहर सदा सीने में आबाद है लेकिन
इक आलम-ए-ख़ामोश है जिस सम्त नज़र जाए
हम भी हैं किसी कहफ़ के असहाब की मानिंद
ऐसा न हो जब आँख खुले वक़्त गुज़र जाए
जब साँप ही डसवाने की आदत है तो यारो
जो ज़हर ज़बाँ पर है वो दिल में भी उतर जाए
कश्ती है मगर हम में कोई नूह नहीं है
आया हुआ तूफ़ान ख़ुदा जाने किधर जाए
मैं साया किए अब्र के मानिंद चलूँगा
ऐ दोस्त जहाँ तक भी तिरी राहगुज़र जाए
मैं कुछ न कहूँ और ये चाहूँ कि मिरी बात
ख़ुशबू की तरह उड़ के तिरे दिल में उतर जाए
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments