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अक़्ल से हासिल हुई क्या क्या पशीमानी मुझे

Hasrat MohaniHasrat Mohani
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अक़्ल से हासिल हुई क्या क्या पशीमानी मुझे

इश्क़ जब देने लगा तालीम-ए-नादानी मुझे

रंज देगी बाग़-ए-रिज़वाँ की तन-आसानी मुझे

याद आएगा तिरा लुत्फ़-ए-सितम-रानी मुझे

मेरी जानिब है मुख़ातिब ख़ास कर वो चश्म-ए-नाज़

अब तो करनी ही पड़ेगी दिल की क़ुर्बानी मुझे

देख ले अब कहीं आ कर जो वो ग़फ़लत-शिआर

किस क़दर हो जाए मर जाने में आसानी मुझे

बे-नक़ाब आने को हैं मक़्तल में वो बे-शक मगर

देखने काहे को देगी मेरी हैरानी मुझे

सैंकड़ों आज़ादियाँ इस क़ैद पर 'हसरत' निसार

जिस के बाइस कहते हैं सब उन का ज़िंदानी मुझे

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