0 Bookmarks 128 Reads0 Likes
दिल की दहलीज़ पे जब शाम का साया उतरा
उफ़ुक़-ए-दर्द से सीने में उजाला उतरा
रात आई तो अँधेरे का समंदर उमड़ा
चाँद निकला तो समंदर में सफ़ीना उतरा
पहले इक याद सी आई ख़लिश जाँ बन कर
फिर ये नश्तर रग-ए-एहसास में गहरा उतरा
जल चुके ख़्वाब तो सर नामा-ए-ताबीर खुला
बुझ गई आँख तो पलकों पे सितारा उतरा
सब उम्मीदें मेरे आशोब-ए-तमन्ना तक थीं
बस्तियाँ हो गईं ग़र्क़ाब तो दरिया उतरा
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments