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कुछ भी नहीं किया
केवल दिया, दिया, दिया
जीवन को
सपनों की छवि से
भर लिया,
अंतर की ज्वाला में
जला-बुझा किया
टेरता पपीहा-सा
'पिया, पिया, पिया'
चन्दन-सा तन-प्राण
घिसता रहा,
गौरव, गति, गंध, गान
रिसता रहा,
एक दिया जला
दूसरा बुझा लिया
खंडित विधु-लेखा मैं
पाँव के तले,
पानी की रेखा ज्यों
बने, मिट चले
पंछी ज्यों पंखहीन,
ऐसे ही जिया
कुछ भी नहीं किया
केवल दिया, दिया, दिया
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