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आकाश का यह कौन-सा किनारा है
जहाँ न सूरज है, न चाँद है, न तारा है!
चारों ओर एक नीला विस्तार है,
जिसमें से निकलने का न कोई छिद्र है, न कोई द्वार है.
यहाँ मेरा अस्तित्व है केवल मैं नहीं हूँ,
अथवा कुछ भी नहीं है और,
मैं-ही-मैं सब कहीं हूँ.
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