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अगर समझो तो मैं ही सब कहीं हूँ

Gulab KhandelwalGulab Khandelwal
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अगर समझो तो मैं ही सब कहीं हूँ
नहीं समझो तो वैसे कुछ नहीं हूँ

कोई हर साँस में आवाज़ देता
'यहीं हूँ मैं, यहीं हूँ मैं, यहीं हूँ'

उतरती आती हैं परछाइयाँ-सी
कोई ढूढों तो इनमें -- मैं कहीं हूँ

कभी जो याद आये, पूछ लेना
लिए मुट्ठी में दिल अब भी वहीं हूँ

गुलाब! इनसे हरा है ज़ख्म दिल का
मैं काँटों को कभी भूला नहीं हूँ

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