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मधुर तुम इतना ही कर दो

Gopaldas NeerajGopaldas Neeraj
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मधुर तुम इतना ही कर दो !

यदि यह कहते हो मैं गाऊँ,
जलकर भी आनन्द मनाऊँ
इस मिट्टी के पँजर में मत छोटा-सा उर दो !

मधुर तुम इतना ही कर दो!

तेरी मधुशाला के भीतर,
मैं ही ख़ाली प्याला लेकर,
बैठा हूँ लज्जा से दबकर,
मैं पी लूँ, मधु न सही, इसमें विष ही भर दो !

मधुर, तुम इतना ही कर दो !

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