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कितना कोमल,
कितना वत्सल,
रे ! जननी का
वह अंतस्तल,
जिसका यह शीतल
करुणा जल,
बहता रहता
युग-युग अविरल
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कितना कोमल,
कितना वत्सल,
रे ! जननी का
वह अंतस्तल,
जिसका यह शीतल
करुणा जल,
बहता रहता
युग-युग अविरल
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