
0 Bookmarks 98 Reads0 Likes
कज-कुलाही की अदा याद आई
कू-ए-क़ातिल की हवा याद आई
दिल को शायद नहीं यारा-ए-वफ़ा
वर्ना क्यूँ तेरी जफ़ा याद आई
उस की बेदाद के हर ज़िक्र के साथ
उस की एक एक अदा याद आई
दिल के ख़ूँ होने की जब बात चली
उस की ख़ुशबू-ए-हिना याद आई
शुक्रिया नासेह-ए-मुश्फ़िक़ कि फिर आज
अपनी रूदाद-ए-वफ़ा याद आई
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments