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चेहरे पर आती हैं परछाइयाँ
ये नई उम्र वाले गठीले बदन
ये नई काट के अंगबेधी वसन
हर सड़क पर
चटख रंग की बाढ़
बेफ़िक्र चलती हुईं
देहधारी शिखाएँ गरम
फूल की नोक चुभती निकलती हुईं
रुकी दृष्टि हटती
लिहाजों भरी सब्र करती, संभलती
धुरी छोड़ देती है लेकिन
शुरू से अधूरी, पियासी, थमी
कुछ पुराने खुमारों की गहराइयाँ
मेरे चेहरे पर आती हैं परछाइयाँ
उड़े तूफान पर
जब ज़रा हीरा आया
रुके, साँस ली
तेज़ जाती हुई एक झाँकी दिखी
स्वप्न-सी उम्र की
आँख झपकी
कि बदली समूची छटा दृश्य की
मंच घूमा
बिठा दर्शकों में गया
बीच अभिनय
अभी तो खड़े पात्र थे
भाव मुद्रा धरे
प्यार आधा किए
वक्ष आधे मिले
बाँह आधी उठी
बात आधी कही !
फिर यही है हवा
कासनी नीलिमा
फिर वही दुष्ट मौसम
शरम तोड़ता
फिर वही फूल पीले
नए घोंसले
फिर वही घास पर
धूप का हाशिया
फिर वही चाँदनी
तेज, उत्कट युवा
फिर अछूती डगर
उम्र उठता नशा
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