चिंता ज्वाल सरीर की's image
1 min read

चिंता ज्वाल सरीर की

Giridhar KaviraiGiridhar Kavirai
0 Bookmarks 226 Reads0 Likes

चिंता ज्वाल सरीर की, दाह लगे न बुझाय।
प्रकट धुआं नहिं देखिए, उर अंतर धुंधुवाय॥

उर अंतर धुंधुवाय, जरै जस कांच की भट्ठी।
रक्त मांस जरि जाय, रहै पांजरि की ठट्ठी॥

कह 'गिरिधर कविराय, सुनो रे मेरे मिंता।
ते नर कैसे जियै, जाहि व्यापी है चिंता॥

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts