
0 Bookmarks 98 Reads0 Likes
देख उस को इक आह हम ने कर ली
हसरत से निगाह हम ने कर ली
क्या जाने कोई कि घर में बैठे
उस शोख़ से राह हम ने कर ली
बंदे पे न कर करम ज़ियादा
बस बस तिरी चाह हम ने कर ली
जब उस ने चलाई तेग़ हम पर
हाथों की पनाह हम ने कर ली
नख़वत से जो कोई पेश आया
कज अपनी कुलाह हम ने कर ली
ज़ुल्फ़-ओ-रुख़-ए-महवशाँ की दौलत
सैर-ए-शब-ए-माह हम ने कर ली
क्या देर है फिर ये अब्र-ए-रहमत
तख़्ती तो सियाह हम ने कर ली
दी ज़ब्त में जब कि 'मुसहफ़ी' जाँ
शर्म उस की गवाह हम ने कर ली
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments