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आता है किस अंदाज़ से टुक नाज़ तो देखो

Ghulam HamdaniGhulam Hamdani
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आता है किस अंदाज़ से टुक नाज़ तो देखो

किस धज से क़दम पड़ता है अंदाज़ तो देखो

ताऊस-ए-परी-जल्वा को ठुकरा के चले है

अंदाज़-ए-ख़िराम-ए-बुत-ए-तन्नाज़ तो देखो

यक जुम्बिश-ए-लब उस की ने लाखों को जिलाया

ईसा को ये क़ुदरत थी तुम ए'जाज़ तो देखो

करता हूँ मैं दुज़्दीदा-नज़र गर कभी उस पर

नज़रों में परख ले है नज़र-बाज़ तो देखो

मैं किंगरा-ए-अर्श से पर मार के गुज़रा

अल्लाह-रे रसाई मिरी पर्वाज़ तो देखो

ऐ वाए कि इस सई पर अपनी कभी उस से

साज़िश न हुई ताला-ए-ना-साज़ तो देखो

क्या बोलने में उस बुत-ए-काफ़िर की अदा है

शीरीं-सुख़नी इक तरफ़ आवाज़ तो देखो

अबतर है ये दीवाँ तो मियाँ-'मुसहफ़ी' सारा

अंजाम की क्या कहते हो आग़ाज़ तो देखो

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