
0 Bookmarks 197 Reads0 Likes
कोई मिलता नहीं ख़ुदा की तरह
फिरता रहता हूँ मैं दुआ की तरह
ग़म तआक़ुब में हैं सज़ा की तरह
तू छुपा ले मुझे ख़ता की तरह
है मरीज़ों में तज़्किरा मेरा
आज़माई हुई दवा की तरह
हो रहीं हैं शहादतें मुझ में
और मैं चुप हूँ कर्बला की तरह
जिस की ख़ातिर चराग़ बनता हूँ
घूरता है वही हवा की तरह
वक़्त के गुम्बदों में रहता हूँ
एक गूँजी हुई सदा की तरह
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments